राजोद। मनुष्य को जीवन मे दान धर्म करना चाहिए जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है संत की वाणी पाप रुपी कचरे को हर लेती है। भक्ती मे अपनापन होना चाहिए। कितनी बड़ी विपदा भी आए तो भगवान उस विपदा को हर लेते हैं उक्त गोपाल गौशाला मे चल श्री मद्भभागवत कथा के चोथे दिन श्री कृष्ण जन्मोत्सव पर संत श्री प्रभु जी नागर ने कही नागर ने कहा कि मनुष्य को जीवन मे कभी भी नकारात्मक भाव नही लाना चाहिए। मनुष्य को भगवान के सहारे ही रहना चाहिए भगवान हराम की कोड़ी किसी को न दे वही राम का दराता घास काटता है ओर हराम का दराता हाथ काटता है। राम की माया राम ही जाने क्या पहचाने राम दिवाने, माथे पर बेठने वालो की कोई ईज्जत नही करता है, बैठना है तो संत के शरण मे बेठो सच्चा संत वही जो सच्चे मन से प्रभु स्मरण करे, सतोगुणी सरलता शरणता मे मिलती है। जिनमे सरलता आ जाती है वह संत है। संत नागर ने कहा की आप भागवत कथा सुनने गए बड़ी संख्या में लोग आते है इतनी सारी जनता किस लिए रुकी शब्द के लिए शब्द में वह ताकत है जो आप किसी को गरम गरम चाय भी पिलाओ तो भी नहीं रुकोगे शब्द के लिए रुके हो। सबंध बनाना तो सरल है पर उस सबंध को निभाना कठिन है। जेसे कंस ने वासुदेव से सबंध बनाकर अपनी बहन का रिश्ता तय कर दिया पर बाद मे उसी कंस ने वासुदेव को कारागार मे डालकर सबंध नही निभाया कारागार मे आकाशवाणी के माध्यम से कंस को बोध हो गया कि देवकी की किसी एक संतान से उसकी मोत होगी एक कर कंस ने सभी 6 संतानों को मार डाला व आठवीं संतान के रूप में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। ओर कंस का अतं भगवान ने किया।
श्री कृष्ण जन्मोत्सव धुमधाम से मनाया – नागर ने कहा कि श्री कृष्ण ने देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया वसुदेव जी सिर पर रखी टोकरी मे कृष्ण जी को जेसे लेकर आए तभी पुरे कथा पांडाल मे नंद घर आनंद भयो जय हो नंद लाल की गुंज से गुंजायमान हो गया। हाथी घोड़ा पालकी जय हो नंदलाल की के जयकारे लगाए।