नरेंद्र पँवार, दसाई। शिक्षण कार्य व्यक्तिगत नहीं अपितु सामाजिक दायित्व है। शिक्षक को अपने इस दायित्व से कभी मूंह नहीं मोडना चाहिये। ईश्वर ने आपको इस योग्य बनाया है तो उसे ईमानदारी के साथ निभाना ही चाहिये। शिक्षा से बडा कोई दान नही होता हैं हमारे द्वारा दी गई शिक्षा से कई बच्चों का भविष्य बनता हैं। इसलिय इस कार्य को हमेंशा मन लगाकर ही करना चाहिये। उक्त विचार स्थानीय शासकीय कन्या उमावि में सेवानिवृति के अवसर पर आयोजित विदाई समारोह के अवसर पर प्रधानाध्यापक कैलाश मारू ने व्यक्त किये। कार्यक्रम में सामाजिक दूरी का पालन करते हुवे सभी लोेग मास्क लगाकर उपस्थित थे। मारु ने पढाई के अलावा भी खेल, पर्यावरण के क्षेत्र में भी कई कार्य किये जिसकी नगर में हमेशा ही प्रशंसा होती थी, वहीं 41वर्ष की सेवा पूर्ण होने पर इनकी विद्यालयीन अनेक उपलब्धियों के चलते सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य प्रतिभा दूबे ने की। मुख्य अतिथि संकूल प्राचार्य बीएल पाटील, विशेष अतिथि के रूप में देवेन्द्रसिंह राठोर एवं शांतिलाल मारू उपस्थित थे। कार्यक्रम का प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण के साथ किया गया। वहीं मारू को शाल श्रीफल एवं मोमेन्टो प्रदान किया गया। संस्था की ओर से एक प्रशस्ति पत्र भी भेंट किया गया। जिसका वाचन वरिष्ठ शिक्षक सत्यनारायण धाकड ने किया।
किया पौधा रोपण – अपने सम्मान को चिरस्मरणीय बनाने के लिये मारू ने वट, नीम एवं पीपल जैसे छायादार पौधे लगाकर उन्हे बडे होने तक देखभाल करने का संकल्प लिया। साथ ही विद्यालय में उपस्थित समस्त शिक्षकों को अपने अपने जन्म दिन पर कम से कम एक एक पौधा लगाने का अव्हान किया। मारु ने बताया कि शिक्षा के क्षेत्र में मेरा हमेंशा ही लगाव रहा है ओर आगे भी रहेगा। बच्चों को जरुरत पडने पर मै निःशुल्क हमेंशा ही पढाने के लिये उपस्थित रहूंगा। वहीं विद्यालय को आवश्यकता पढने पर सेवा देने के लिये तैयार रहेगे ।
इस अवसर पर मुकेश सक्सेना, मुकेश पाटीदार, राजीव बघेल, गोविन्द झाला, निशा प्रजापति, मंजूबाला मारू, आत्माराम पाटील, मोहनलाल पाटीदार सहिेत अनेक शिक्षकों ने मारू के साथ बिताये कार्यकाल को स्मरण करतें हुवे इनके सेवाकाल की उपलब्धियों का बखान किया। कार्यक्रम में प्रभारी प्रधानाध्यापक गोविन्द झाला ने सबका आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के अंत में समस्त शिक्षकों ने सेवानिवृत होने वाले शिक्षक मारू के घर तक जाकर उन्हे बिदाई दी गई। मारु की सेवा को देखते हुवे रास्तेभर में कई जगह मंचों से स्वागत भी किया गया।