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आज जावरों से क्षमायाचना करने आये श्रीसंघ के 100 से अधिक श्रावक – श्राविकाएं, जैसा हमारा आचरण होगा वैसा ही आचरण हमारी आने वाली संताने करती है – आचार्यश्री ऋषभचन्द्र सूरीश्वरजी…

झाबुआ। दादा गुरुदेव की पाट परम्परा के अष्ठम पटधर गच्छाधिपति आचार्यदेवश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने जावरा से क्षमायाचना करने आये श्रीसंघ के 100 से अधिक श्रावक श्राविकाओं को प्रवचन में कहा कि आज नहीं तो कल मुझे अर्थ, पद, मान, प्रतिष्ठा प्राप्त होगी इस चिन्तन में मनुष्य हमेशा लगा रहता है । जिस प्रकार अंजुली में से धीरे- धीरे जल निकल जाता है उसी प्रकार मानव जीवन से उम्र धीरे- धीरे रोज कम हो रही है और कब हमारी श्वांस बंध हो जायेगी कोई नही जानता क्योंकि जीवन क्षण भंगुर है कब मृत्यु हो जायेगी कोई नहीं जानता हम कहने को बोलते है उम्र 100 साल की होती है पर प्राण कब निकल जाते है कोई नहीं जानता और व्यक्ति को अपने जीवन की भुल जीवन के अंत समय में समझ में आती है तब तक समय हाथ से निकल चूका होता है । जीवन एक सफर है इस सफर में दुख तकलीफ आती रहेगी पर हमे अपने जीवन को समायोजित करके चलना चाहियें । हमेशा खुश रहने का प्रयास करें अपनी वेदना किसी से ना कहे । अंगे्रजी के पी शब्द से परमात्मा और परेशानियां शब्द बनता है पर संसार की सारी समस्या और परेशानियों का सिर्फ परमात्मा ही हल है । ज्ञानी कहते है परेशानियां मनुष्य के जीवन में आती ही है और यही परेशानी व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ सीख दे जाती है । जबतक हमारे जीवन में दुख नहीं आयेगा हम प्रभु को याद नहीं करते है । पद, प्रतिष्ठा, पैसा, मान, सम्मान सबकुछ प्राप्त हो जाने से ही जीवन सुखी नहीं बन जाता है । जीवन में आत्म संतुष्टि की बहुत आवश्कता है । सुख की कल्पना करना मानव के जीवन में बहुत कठिन है । देव है तो दानव है, दानव है तो मानव है। 

हमारा यह चित्त कभी मानव, तो कभी दानव और कभी देव बन जाता है । मानव जीवन में ही व्यक्ति सुख और दुख की अनुभूति करता है । प्रभु की भक्ति सरकारी नौकरी जैसी है । जबतक की तबतक फल प्राप्त हुआ बुढापे में पेंशन के रुप में प्रभु भक्ति कर अपने जीवन को हम शिखर की और ले जाते है । जन्म, मृत्यु, बुढापा यह एक बहुत वेदना है बुढापे में शरीर काम नहीं करता है तब संतान भी उस वक्त उनकी नहीं सुनती है । हर घर में श्रवणकुमार जैसा पुत्र प्राप्त हो जाये यह जरुरी नहीं । इस लिये समय रहते प्रभु भक्ति में अपना मन लगाकर अपनी आत्मा का कल्याण जप- तप, पूजा- पाठ, करके कर लेना चाहिये । जैसा हमारा आचरण होगा वैसा ही आचरण हमारी आने वाली संताने करती है । यदि हमने घर में धर्म का माहोल बनाया तो हमें वही माहोल प्रत्युत्तर में मिलेगा । आचार्यश्री ने कहा मिच्छामि दुक्कड़ तो हम एक दूसरे से यू ही कर लेते है ज्यादा नजदीक रहने वाले इंसानों को एक दूसरे से खमत-खामणा (क्षमायाचना) करना चाहिये और यह क्षमायाचना दिल के अंदर बसी हुई गांठों को तोड़ते हुये करना चाहिये । आज गुरुवार को जावरा श्रीसंघ के अध्यक्ष ज्ञानचंदजी चोपड़ा, धर्मचंद चपड़ोद, मदनलाल चोरड़िया आदि का बहुमान सम्मान चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों द्वारा किया गया। 

दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर जी म.सा. की पाट परम्परा के अष्ठम पटधर वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पावनतम निश्रा एवं पूज्य मुनिराज श्री रजतचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जीतचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जनकचन्द्रविजयजी म.सा., साध्वी श्री रत्नरेखाश्री जी म.सा., साध्वी श्री अनुभवदृष्टाश्री जी म.सा., साध्वी श्री कल्पदर्शिताश्री जी म.सा. आदि ठाणा की सानिध्यता में झाबुआ शहर में वर्षावास 2017 चल रहा है।

शुक्रवार और शनिवार को महिला चैविसी का आयोजन श्री संतोष नाकोड़ा परिवार द्वारा किया गया है । रविवार 3 सितम्बर को झाबुआ नगर में बस स्टेण्ड के पीछे स्थित शहनाई गार्डन में दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर जी म.सा. की पाट परम्परा के अष्ठम पटधर वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के मुखारविंद से चातुर्मास आराधना की पंचम महामांगलिक का भव्य आयोजन 11 बजे चातुर्मास समिति द्वारा किया गया है । महामांगलिक का लाभ श्री संतोष नाकोड़ा फाईव स्टाॅर परिवार द्वारा लिया गया है । इसका सीधा प्रसारण सुबह 11 बजे से 2 बजे तक पारस टीवी चैनल पर भी किया जावेगा।

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